19th Century Social and Religious Reform Movements । 19वीं सदी के सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलन । In Hindi

19th Century Social and Religious Reform Movements, कई कारणों से महत्‍वपूर्ण थे। पहला तो, स्त्रियों की मुक्ति तथा उनको समान अधिकार दिलाना और दूसरा, छुआछूत, जाति-प्रथा की जड़ताओं को समाप्‍त करना। इन आंदोलनों में अखिल भारतीय चरित्र का अभाव था। ये बंगाल, महाराष्‍ट्र, पंजाब आदि तक ही सीमित थे। इनका प्रभाव मुख्‍य रूप से शिक्षित, उच्‍च और मध्‍यम वर्गों तक ही सीमित था। इसने भारत की जनता के बीच राष्‍ट्रवादी जागृति में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई। इसे ‘आधुनिक भारत की सुबह’ के नाम से भी जाना जाता है। इस आंदोलन में “संप्रदायबाद और सांप्रदायकता” के बीज भी बोए गये जो कि असफल साबित हुए।

 भारतीय पुर्नजागरण में 19th Century Social and Religious Reform Movements निम्‍न लिखित हैं-

यंग-बंग आंदोलन

  • 1826 ई. में हेनरी लुई विवियन डेरोजियो द्वारा शुरू।
  • इसके प्रमुख सदस्‍य- कृष्‍ण मोहन बनर्जी, रसिककृष्‍ण मल्लिक व ताराचंद चक्रवर्ती।
  • इसके प्रमुख कार्य निम्‍न लिखि‍त हैं- समाज में व्‍याप्‍त कुरीतियों का विरोध करना ।
  • ‘जनसेवक’ पत्रिका का प्रकाशन किया।
  • डेरोजियों ने हेस्‍परस, कलकत्‍ता लाइब्रेरी गजट का संपादन किया एवं ‘भारत गजट’ से भी जुड़े थे।

ब्रम्‍ह समाज

  • 1828 ई. में राजा राममोहन रॉय व देवेन्‍द्र नाथ टैगोर द्वारा प्रारम्‍भ
  • इसे पूर्व में (1815 ई.) आत्‍मीय सभा के रूप में प्रारम्‍भ किया गया था।
  • इसके प्रमुख कार्य निम्‍न लिखि‍त हैं- एकेश्‍वरवाद का प्रचार
  • अवतारवाद को अस्‍वीकार किया।
  • कर्मकांडों का त्‍याग, पुरोहितों के अस्तित्‍व, मूर्तिपूजा, अंधविश्‍वासस का विरोध किया।
  • ‘जाति व्‍यवस्‍था’ की आलोचना की और ‘सती प्रथा’ का विरोध किया। 1829 ई. में सती प्रथा का उन्‍मूलन।

धर्म सभा- 1830 ई. में, राधाकांत देव द्वारा कलकत्‍ता में स्‍थापित। इसके प्रमुख कार्य- कट्टरपंथी और उदारवादी सुधारों की निंदा की और भारत में ‘पश्चिमी शिक्षा’ के प्रसार में मदद की। इस सभा ने रूढि़वादिता को सुरक्षा प्रदान की ।

सत्‍यशोधक समाज– इसकी स्‍थापना जयोतिबा फुले द्वारा की गई थी। इसका मुख्‍य उद्देश्‍य जाति व्‍यवस्‍था से लड़ना था।

कूका आंदोलन– 1841 ई. में भाई बालक सिंह द्वारा स्‍थापित। इस आंदोलन को नामधारी के नाम से भी जाना जाता है। यह एक ब्रिटिश विरोधी था साथ ही साथ सिखों के बीच एक धार्मिक सुधार आंदोलन के रूप में प्रारंभ हुआ।

राधास्‍वामी आंदोलन– 1861 ई. में तुलसीराम/ शिवदयाल साहब द्वारा आगरा में स्‍थापित । इसका मुख्‍य उद्देश्‍य गुरूओं के सर्वोच्‍च अस्तित्‍व में विश्‍वास,  अनुयाईयों के लिये सरल सामाजिक जीवन।

देवबंद आंदोलन– 1866 ई. में राशिद अहमद गंगोही द्वारा सहारनपुर में स्‍थापित। यह एक पुररूत्‍थानवादी आंदोलन था। इसकी धार्मिक शिक्षाओं में इस्‍लाम की प्रमुखता रही इसके अलावा पश्चिमी शिक्षा को स्‍वीकार नहीं किया। कांग्रेस के गठन में सहयोग किया तथा सैयद अहमद खान के विचारों का विरोध किया।

कुछ अन्‍य प्रमुख आन्‍दोलन-

प्रार्थना समाज

  • 1867 ई. में आत्‍माराम पांडुरंग द्वारा बंबई में स्‍थापित।
  • इसके मुख्‍य सदस्‍य ‘गोविंद रानाडे एवं आर.जी. भंडारकर’ थे ।
  • इसने जाति के भेदभाव और धार्मिक रूढि़वाद का उन्‍मूलन किया।
  • महिलाओं के ‘उत्‍थान और एकेश्‍वरवाद’ पर जोर दिया।

भारतीय सुधार संघ– 1870 ई. में केशवचंद्र सेन द्वारा कलकत्‍ता में स्‍थापित। इसका मुख्‍य कार्य ‘बाल विवाह’ के खिलाफ जनमत बनाना, महिलाओं का सामाजिक विकास एवं समाज में वालिग विवाह को वैद्य बनाना।

आर्य समाज

  • 1875 ई. में दयानंद सरस्‍वती द्वारा बंबई में स्‍थापित।
  • 9वीं सदी के सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन में आर्य समाज की महत्‍वपूर्ण भूमिका है। इसके प्रमुख कार्य निम्‍न लिखित हैं-
  • भारत में स्थित अन्‍य धर्मों पर हिंदू आस्‍था को मानने पर जोर देना।
  • पुनरूत्‍थानवादी होने के कारण संस्‍कार एवं ब्राहम्‍णों की सर्वोच्‍चता की निंदा की।
  • ब्राहम्‍णों,  द्वारा प्रचारित हिंदू धर्म का विरोध किया।दयानंद एंग्‍लों वैदिक स्‍कूल की स्‍थापना की।

अलीगढ़ आंदोलन– 1877 ई में सैयद अहमद खान द्वारा अलीगढ़ में स्‍थापित। इसका मुख्‍य उद्देश्‍य– धार्मिक सुधार में वैज्ञानिक और तर्कसंगत दृष्टिकोण।

थियोसोफिकल सोसायटी- 1875 ई. में मैडम एच.पी. ब्‍लावटस्‍की तथा कर्नल एच. एस. ओलकाट द्वारा ‘न्‍यूयार्क’ में स्‍थापित। भारत में “एनी बेसेंट” द्वारा चलाया गया। इसका मुख्‍य उद्देश्‍य हिंदुत्‍व, पारसी धर्म और बौद्ध मत जैसे प्राचीन धर्मों को पुनस्‍थार्पित तथा मजबूत किया जाए।

डेक्‍कन एजुकेशन सोसायटी– 1884 में एमजी रानाडे द्वारा पुणे में स्‍थापित। इसने पश्चिमी भारत में “शिक्षा और संस्‍कृति” में योगदान के लिए फगुर्सन कॉलेज, पुणे की स्‍थापना की।

रामकृष्‍ण मिशन

1897 ई. में स्‍वामी विवेकानंद द्वारा ‘बंगाल’ में स्‍थापित। इसके प्रमुख कार्य-

  • प्राचीन भारत के धार्मिक ग्रंथों और वेदांतों के आधार पर हिंदू धर्म को पुर्नजीवित करने की चेतना जाग्रत की ।
  • विवेकानंद ने जाति प्रथा तथा कर्मकांड, पूजा पाठ और अंधविश्‍वास पर हिंदू धर्म के जोर देने की निंदा की।
  • जनता से स्‍वाधीनता, समानता तथा स्‍वतंत्र चिंतन की भावना अपनाने का आग्रह किया।
  • इस मिशन ने स्‍कूल, अस्‍पताल, दवाखाने, अनाथालय, पुस्‍तकालय आदि खोलकर सामाजिक सेवा के अनेक कार्य किये।

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