Arts and Architecture of MP, देश के कला एव स्थापत्य में एक विशेष स्थान रखती है। हमलोग कला के अंतर्गत अनेक शिल्प कलाएं जैसे लौह शिल्प, पीतल शिल्प, काष्ठ शिल्प, धातु शिल्प, बर्तन शिल्प, खिलौना शिल्प, सुपाड़ी शिल्प, मिट्टी शिल्प, बाघ प्रिंट, चंदेरी साड़ी और महेश्वर साड़ी आदि का अध्ययन करते हैं। जबकि स्थापत्य कला के अंतर्गत मंदिरों, मूर्तिकला, गुफाएं, शिलालेख, स्तम्भ, स्तूप, महल-भवन आदि के निर्माण शैली का अध्ययन किया जाता है।
Arts and Architecture of MP
अगरिया लौह शिल्प-
- अगरिया जनजाति लोहे को पिघलाकर तीर, भाला, कुल्हाड़ी, चाकू आदि का निर्माण करती है।
- यह जनजाति मुख्यत: डिंडोरी, बालाघाट, मंडला, सीधी और शहडोल में पाई जाती है।
- लोहे को पिघलाने के तरीकों के आधार पर इस जनजाति को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है- पथरिया अगरिया व खुटिया अगरिया।
टीकमगढ़ पीतल शिल्प
- टीकमगढ़ का पीतल शिल्प का निर्माण मिट्टी का प्राथमिक सांचा तैयार कर किया जाता है। जिसे ‘गाबो’ कहा जाता है।
- मूर्तियों में और अधिक स्पष्टता लाने के लिये कपो प्रक्रिया अपनायी जाती है।
- टीकमगढ़ क्षेत्र की ‘राधा-कृष्ण’ की मूर्तियां देशभर में प्रसिद्ध हैं।
चीचली का पीतल शिल्प-
- नरसिंहपुर का चीचली गांव पीतल शिल्प के लिये प्रसिद्ध है।
- यहां मुख्यत: झांझ, घंटा व घडि़याल बनाया जाता है।
- चीचली के शिल्पकारों को कसेरे, ठठेरे या तमेंरे कहा जाता है।
उचेहरा का धातु शिल्प- मध्यप्रदेश के सतना जिले का उचेहरा गांव कांसा व फूल की थालियों और बटलोही के निर्माण के लिये प्रसिद्ध है।
मण्डला का बर्तन शिल्प– मध्यप्रदेश का मण्डला ‘कांस्य शिल्प कला’ के लिये अत्यधिक प्रसिद्ध है।
बैतूल का भरेवा शिल्प- भरेवा का मुख्य अर्थ है- धातु की ढलाई। भरेवा कलाकार व्यक्त इच्छाओं व मान्यताओं के अनुसार ही मूर्ति का निर्माण करते हैं।
बुधनी का खिलौना शिल्प- मध्यप्रदेश के सीहोर जिले में दूधी, सागौन और साज लकडि़यो की कलाकृति बनायी जाती हैं।
पचमढ़ी का लकड़ी शिल्प- मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के पचमढ़ी में आदिवासियों द्वारा मुखौटे, खिलौने और साज-सज्जा का सामान प्रमुखत: सागौन व साज की लकड़ी से बनाया जाता है।
शहडोल का लकड़ी शिल्प- मध्यप्रदेश के शहडोल में लकड़ी से बने खिलौनों, (सजावटी सामान, सिंदूर की डिब्बी, चूडी आदि) की मांग यूरोपीय तथा अन्य देशों में अधिक है।
रीवा का सुपारी शिल्प- रीवा सुपारी शिल्प के लिये विश्व विख्यात है। सुपारियों का प्रयोग करके मूर्तियां जैसे विघ्न विनाशक भगवान गणेश की मूर्ति अत्यधिक प्रसिद्ध है। इसके साथ ही कोरकू जनजाति के मृतक स्तंभ मंडो और भीलों के कलात्मक दिवाव्या लकड़ी कला के श्रेष्ठ नमूने हैं।
मिटटी शिल्प-
- मिट्टी से संबंधित प्राचीनतम शिल्पकला टेराकोटा शिल्प कला है।
- पुनिया और अरहरिया जनजातियों का संबंध टेराकोटा शिलपकला से है।
- टेराकोटा शिल्प में बड़ी देवी और फुलवारी देवी की प्रतिमाओं का निर्माण प्रमुखता से किया जाता है।
चर्म शिल्प- मध्यप्रदेश के इंदौर और देवास में चमडे के विभिन्न प्रकार के आकृतियों जैसे हाथी, घोड़ा आदि का निर्माण किया जाता है।
गुडि़या शिल्प-
- मध्यप्रदेश का झाबुआ जिला भीली गुडि़या का केन्द्र माना जाता है।
- बटृटो बाई मध्यप्रदेश की प्रसिद्ध गुडिया कलाकार हैं।
- ग्वालियर क्षेत्र कपड़े, लकड़ी और कागज के खिलौनों के लिये प्रसिद्ध है।
खराद शिल्प-
- लकड़ी को सुडौल व आकर्षित रूप देने के लिये खराद पर कसा जाता है। यह एक अत्यंत प्राचीन कला है।
- खराद कला में खिलौनों और सोफा सेट के पाओं को आकर्षित रूप दिया जाता है।
- यह मख्यत: श्योपुर, मुरैना व रीवा में अत्यधिक प्रचलित है।
बांस शिल्प- मध्यप्रदेश के बालाघाट, मण्डला और झाबुआ जिलों में जनजातीय लोगों द्वारा दैनिक उपयोगी सामान बनाने में कुशलता से किया जाता है।
प्रस्तर शिल्प– मध्यप्रदेश के मंदसौर और रतलाम जिलों में प्रस्तर शिल्प का विकास हुआ है। यहां के शिल्पकार गुर्जर, जाट और भील आदि जनजातियों के तथा हिंदू देवी-देवताओं की मूर्ति का निर्माण करते हैं।
लाख शिल्प- लखार जाति लाख का काम करने के लिये जानी जाती है। जो लाख के आभूषण, खिलौनों और साज सज्जा सामान आदि का निर्माण करती है। मध्यप्रदेश के उज्जैन, इंदौर, रतलाम, मंदसौर और महेश्वर प्रमुख जिले हैं। वृक्ष के गोंद या रस से लाख बनाई जाती है।
छीपा शिल्प- छीपा शिल्प में विभिन्न छापों को कपड़े पर हाथ से उकेरा जाता है। यह मुख्यत: भील जनजाति से संबंधित है। मध्यप्रदेश में उज्जैन, बदनावर और खिराबा प्रमुख क्षेत्र इस शिल्प के लिये प्रसिद्ध है।
Arts and Architecture of MP– बाघ प्रिंट
- इसे अली जरीन के नाम से भी जाना जाता है।
- इस्माइल सुलेमानजी खली, कुक्षी निवासी इस प्रिंट के कुशल कारीगर हैं और इन्हें यूनेस्को पुरस्कार भी दिया जा चुका है।
- अर्जेंटीना की वस्त्र निर्माण कंपनी रेपसोडिया ने बाघ प्रिंट को विश्व ख्याति दिलाई।
चंदेरी साड़ी
- मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले में स्थित चंदेरी साडियों के लिये विश्व प्रसिद्ध है।
- साडि़यों में हथकरघे के माध्यम से मोर, बतख जैसी अनेक आकृतियां उकेरी जाती है।
- नाल फेरना चंदेरी साड़ी निर्माण से संबंधित है।
महेश्वर साडि़यां
- महेश्वर में साडि़यों के निर्माण का श्रेय माता श्रीमती अहिल्याबाई को दिया जाता है।
- मनमोहक पल्लू, कलात्मक किनारे, जरी रेशम की कढाई यहां की प्रमुख कलात्मक इकाई है।
Arts and Architecture of MP
क्र. | शिल्प कला | क्षेत्र |
1 | कंधी शिल्प | बंजारा जनजाति |
2 | काष्ठ शिल्प | कोरकू व भील, मुरैना |
3 | तीर धनुष कला | भील जनजाति |
4 | बांस शिल्प | भील व बैगा जनजाति |
5 | लाख शिल्प | लखार जनजाति |
6 | टेराकोटा शिल्प | गोंड एवं बैगा |
7 | महेश्वरी साड़ी | महेश्वर, खरगोन |
8 | चन्देरी साड़ी | चन्देरी व अशोक नगर |
9 | पीतल शिल्प | नरसिंहपुर |
10 | धातु शिल्प | सतना |
11 | सुपारी शिल्प | रीवा |
12 | खिलौना शिल्प | सीहोर |
13 | प्रस्तर शिल्प | मन्दसौर |
14 | चर्मशिल्प | शहडोल |
15 | कढाई-बुनाई | राजगढ |
16 | बटुआ शिल्प | भोपाल |
17 | भैरवगढ प्रिन्ट | उज्जैन |
18 | कांसा, पीतल बर्तन | दमोह |
19 | मंगलूर टाईल्स | बालाघाट |
Arts and Architecture of MP
मध्यप्रदेश की स्थापत्य एवं वास्तुकला के उद्भव तथा विकास के इतिहास में हड़प्पा या सिंधु घाटी सभ्यता, मौर्य वंश, शुंग वंश, कुषाण वंश, गुप्त, राष्ट्रकूट, पल्लव और चंदेल आदि शासकों का उल्लेखनीय एवं महत्वपूर्ण योगदान रहा है। स्थापत्य कला भवन निर्माण एवं शिल्प विज्ञान का सम्मिलित रूप होता है। मंदिर निर्माण प्रक्रिया का विकास मौर्यकाल में हुआ जबकि इसका वास्तिवक विकास गुप्तकाल में हुआ है। स्थापत्य कला के विकास की दृष्टि से भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग गुप्त काल को कहा जाता है।
स्थापत्य कला की प्रमुख शैलियां निम्नलिखित हैं-
पंचायतन शैली- इस शैली में मुख्य मंदिर अन्य 04 मंदिरों द्वारा आसपास से घिरा होता है। झांसी में स्थित देवगढ़ का दशावतार मंदिर पंचायतन शैली का प्रमुख उदाहरण है।
नागर शैली
इस शैली का विकास 8वी से 13वी शताब्दी में हुआ है। यह हिमालय से विध्याचंल पर्वत तक फैली हुआ है। उत्तर में हिमालय, दक्षिण में कर्नाटक के बीजापुर, पूर्व में बंगाल व पशिचम में पंजाब तक नागर शैली के मंदिर पाये जाते हैं। इनके अंदर 04 कक्ष होते हैं। मंदिर के ऊपर एकरेखीय शिखर होते हैं। शिखर के ऊपरी हिस्से को आमलक कहा जाता है। मंदिर जिस ऊंचे चबूतरे पर बना होता है, उसे जगाती कहते हैं।
- इस शैली में मंदिर के दो भाग होते हैं- गर्भग्रह और मंडप।
- गर्भग्रह- यह वर्गाकार कक्ष होता है, जिसमें आराध्य देव की मूर्ती स्थापित की जाती है।
- मंडप- यह स्तम्भ वाले खम्बों से बनता है
- भीतरी ईट मंदिर, कानपुर, लिंगराज मंदिर, भुवनेश्वर और दशावतार मंदिर, झांसी आदि इस शैली के मंदिर के उदाहरण हैं।
- मध्यप्रदेश के संदर्भ में खजुराहो के मंदिर नागर शैली के अंतर्गत सबसे बड़ा मंदिर समूह, ओरछा का चतुर्भज मंदिर, देवगढ का विष्णु मंदिर, मंदसौर का पशुपति नाथ मंदिर और ग्वालियर का तेली का मंदिर, सांस-बहू का मंदिर आदि।
- उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर नागर शैली व द्रविड़ शैली का मिलाजुला स्वरूप है।
द्रविड़ शैली-
यह शैली मुख्यत: दक्षिण क्षेत्र से संबंधित हैं। मुख्यत: कृष्णा नदी से कन्याकुमारी तक जो मंदिर बने हुए है, वह द्रविड़ शैली के बने हुऐ है। इसका विकास 8वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी तक हुआ है। पल्लव वंश के शासकों में इस शैली का विकास हुआ है। चोल वंश द्वारा इस शैली को शिखर तक पहुंचाया था। विघटन की शुरूआत विजयनगर या संगम काल में प्रारंभ हुआ । द्रविड शैली के मंदिर बहुमंजिला बने होते हैं। मंदिर के आसपास तालाब बना होता था, जिसे कल्याणी कहा जाता था। चोल काल में स्थापत्य कला के साथ में चित्रकला का भी विकास हुआ था। कांचीपुरम का कैलाश मंदिर, महाबलीपुरम के तटीय मंदिर, बादामी का विरूपाक्ष मंदिर, तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर आदि द्रविड़ शैली के प्रमुख उदाहरण हैं।
बेसर शैली
नागर शैली और द्रविड़ शैली का मिश्रित रूप बेसर शैली कहलाती है। इसका विकास विध्यांचाल से कष्णा नदी तक हुआ है। इस शैली के जन्म दाता चालुक्य को कहा जाता है। इसे चालुक्य शैली के नाम से भी जाना जाता है। इस शैली में मंदिरों के शिखर गोलाकार या अर्धवृताकार होते हैं। ऐहोल का दुर्गा मंदिर, सट्टदकल का विरूपाक्ष मंदिर, मैसूर को होयलेश्वर मंदिर बेसर शैली का उदाहरण है।
नायक शैली– द्रविड़ शैली से नायक शैली का विकास हुआ है। मदुरै का मीनाक्षी मंदिर, श्रीरंगम का रंगनाथ मंदिर और रामेश्वर मंदिर इस शैली के प्रमुख उदाहरण हैं।
और अधिक पढ़ें- प्रदूषण, प्राकृतिक आपदाएं और प्रबंधन।
