MP me Krishi । Agriculture in MP। मध्‍यप्रदेश में कृषि

मध्‍यप्रदेश क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का दूसरा बड़ा राज्‍य है। जनसंख्‍या के आधार पर भारत में पांचवा सबसे बड़ा राज्‍य है। राज्‍य की अर्थव्‍यवस्‍था मुख्‍यत: कृषि पर आधारित है। मध्‍यप्रदेश राष्‍ट्रीय तिलहन उत्‍पादन का 25.9 प्रतिशत भाग उत्‍पादित करता है। इस प्रकार यह देश का सर्वाधिक ‘तिलहन और दलहन’ उत्‍पादन करने वाला राज्‍य है। MP me Krishi पर आधारति अनेक अनुसंधान संस्‍थान और प्रशिक्षण केन्‍द्र संचालित है।

  • इसमें से 31.2 प्रतिशत किसान और 38.6 प्रतिशत कृषि क्षेत्र मजदूर शामिल हैं।
  • मध्‍यप्रदेश में कुल श्रमिकों का 69.8 प्रतिशत और कुल ग्रामीण श्रमिकों का 85.6 प्रतिशत कृषि पर निर्भर है।
  • प्रदेश के कुल फसल क्षेत्र में रबी की फसलें 45.75 प्रतिशत, 54.25 प्रतिशत में खरीफ की फसलें एवं 11 प्रतिशत क्षेत्र में सब्‍जी, फल, चारा और अन्‍य बागवानी फसलें होती हैं।

प्रमुख फसलें

  • मौसम के आधार पर फसलें- मध्‍यप्रदेश में मौसम के आधार पर फसलों को तीन भागों में बांटा जा सकता है-
    1. खरीफ की फसल– खरीफ की फसलें जून-जुलाई के महीनों में पूर्वमानसून वर्ष के साथ शुरू होता है जब किसान बुआई के लिये अपने खेतों को तैयार करते हैं और किसान मानसून की शुरूआत में खरीफ फसले बोते हैं। इनकी कटाई सितंबर या अक्‍टूबर के दौरान की जाती है। प्रमुख खरीफ फसलें- धान , ज्‍वार, बाजरा, मक्‍का, मूंगफली, जूट, कपास और दलहन आदि।
    2. रबी की फसलें– इस प्रकार की फसलें अक्‍टूबर-नवंबर में बोई जाती है और मार्च-अप्रैल के लगभग अंत तक काट ली जाती है। इन महीनों के दौरान अधिकांश भारत में वर्ष नहीं होती है, इसलिये रवी की फसल अवमृदा की आर्द्रता और कृत्रिम सिंचाई पर निर्भर होती है। रवी की फसलें खरीफ की फसलों की तुलना में मध्‍यप्रदेश की अर्थव्‍यवस्‍था में प्रमुख भूमिका निभाती है। रबी की प्रमुख फसलें- गेहूं, चना और तिलहन।
    3. जायद की फसलें– रवी और खरीफ की फसलों के अलावा मूंग, उड़द, तरबूज आदि कुछ कम अवधि की फसलें हैं, जो मध्‍यवर्ती ग्रीष्‍म ऋतु में उगाई जाती हैं। इस प्रकार की फसलों को ‘जायद की फसलें’ कहते है।

राज्‍य की प्रमुख फसलें-

गेंहू

  • मध्‍यप्रदेश, देश में गेहू के उत्‍पादन में तीसरा सबसे बड़ा राज्‍य है।
  •  देश के कुल गेहूं उत्‍पादन में इसका योगदान 20 प्रतिशत से अधिक है।
  • शरबती और ड्यूरम गेहूं ने प्रदेश को अंतर्राष्‍ट्रीय पहचान प्रदान की है।
  • राज्‍य का गेहूं उत्‍पादन मुख्‍यत: होशंगाबाद, छिंदवाडा, सीहोर, हरदा और रायसेन जिलों में होता है।

दलहन

  • मध्‍यप्रदेश भारत का सबसे बड़ा ‘दलहन उत्‍पादक राज्‍य है।
  • जिसका देश के कुल दलहन उत्‍पादन में 30 प्रतिशत से अधिक योगदान है।
  • राज्‍य में दलहन के क्षेत्र में उड़द, मूंग, मसूर, अरहर, चना अैर काबुली चना प्रमुख है।
  • प्रदेश में दलहन उत्‍पादन करने वाले प्रमुख जिले अशोकनगर, दमोह, देवास और उज्‍जैन हैं।
  • दालों में, ‘चना’ प्रदेश में उगाई जाने वाली प्रमुख फसल है।
  • विदिशा, रायसेन, देवास, उज्‍जैन और सागर राज्‍य प्रमुख चना उत्‍पादक जिले हैं।

तिलहन-

  • मध्‍यप्रदेश तिलहन उत्‍पादन में उज्‍जैन और सीहोर जिलों अग्रणी रहे हैं।
  • अन्‍य उत्‍पादक जिले शाजापुर, धार ओर देवास हैं।
  • ‘सोयाबीन’ तिलहन समूह का आवश्‍यक घटक है। राष्‍ट्रीय सोयाबीन अनुसंधान केंद्र, इंदौर में स्थित है।
  • भारतीय मृदा विज्ञान संस्‍थान भोपाल में स्थित है।
  • केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्‍थान भोपाल में स्थित है।

मध्‍यप्रदेश में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें-

क्र.फसल समूहफसलेंक्षेत्र
1अनाजगेहूं, चावल, मक्‍का, ज्‍वार एवं बाजरा 
2दलहनतुअर, उड़द, चना, मूंग, मसूऱ़ 
3तिलहनसोयाबीन, सरसो, नाइजर, सीसम, अलसी, मूंगफली 
4सब्‍जीफूलगोभी, हरी मटर, भिंडी, टमाटर, आलू, बैंगन, प्‍याज एवं लौकी 
5फलआम, पपीता, केला, अमरूद, संतरा 
6मसालेधनिया, अदरक, हल्‍दी, लहसुन, मिर्च 
7फूलगुलाब, रजनीगंधा, गेंदा 

बागवानी– वर्ष 2013 के बागवानी आंकड़ों के अनुसार उत्‍तरप्रदेश और पश्चिम बंगाल के बाद मध्‍यप्रदेश का देश में ‘तीसरा’ स्‍थान है। मध्‍यप्रदेश ‘अमरूद’ का सबसे बउ़ा उत्‍पादक राज्‍य है और संतरे, प्‍याज एवं मटर का दूसरा सबसे बड़ा उत्‍पादक राज्‍य है। ‘आलू’ के उत्‍पादन में मालवा का क्षेत्र अग्रणी रहा है।

फल और उनसे संबधित क्षेत्र

क्र.फलों के नामक्षेत्र
1आमजबलपुर, बैतूल, होशंगाबाद, झाबुआ एवं भोपाल
2संतरामंदसौर, छिंदवाड़ा, शाजापुर, बैतूल, होशंगाबाद एवं राजगढ।
3मौसम्‍बीशाजापुर एवं होशंगाबाद
4नींबूखरगोन, होशंगाबाद एवं उज्‍जैन।
5पपीतारतलाम, बुरहानपुर, बड़वानी एवं धार
6अमरूदग्‍वालियर, इंदौर, उजजैन, होशंगाबाद एवं रीवा ।
7अंगूरमंदसौर, इंदौर, खंडवा एवं गुना ।
8केलाखंडवा, बड़वानी, धार, खरगोन एवं बुरहानपुर ।

सब्‍जी और उनके उत्‍पादन के प्रमुख क्षेत्र-

क्र.फसल का नामक्षेत्र
1आलूइंदौर, देवास, उज्‍जैन, धार व शाजापुर।
2शकरकंदछतरपुर, सरगुजा और होशंगाबाद
3प्‍याजशाजापुर, उज्‍जैन, खंडवा, देवास और रतलाम।
4टमाटरदतिया, भोपाल, छतरपुर
5बैंगनजबलपुर, भोपाल, सागर व खंडवा
6बंदगोभीबैतूल, इंदौर व होशंगाबाद
7फूल गोभीइंदौर, छिंदवाड़ा व होशंगाबाद
8भिंडीहोशंगाबाद, बालाघाट
9मटरटीकमगढ़ व जबलपुर

मसाले और औषधीय पौधे उत्‍पादन क्षेत्र

क्र.फसल का नामक्षेत्र
1मिर्चधार, खरगोन, इंदौर व बैतूल
2अदरकनीमच, टीकमगढ़ एवं मंदसौर
3हल्‍दीखंडवा, टीकमगढ़ व बड़वानी
4लहसुनरतलाम, मंदसौर, नीमच, भोपाल, इंदौर व छिंदवाड़ा
5धनियामंदसौर, शाजापुर, राजगढ़ व शिवपुरी।

प्रमुख औषधीय फसलें

कुनेन- सिनकोना के पौधे से प्राप्‍त होता है। इसका उपनाम प्राकृतिक मलेरिया नामक दवा

एस्‍परीन- विलो वृक्ष की छाल से प्राप्‍त होती है। इसका उपयोग हृदयघात में किया जाता है। पेरासिटामोल की तरह यह भी एनाल्‍जेसिक एवं एंटीपायरेटिक की तरह व्‍यवहार करती है।

हल्‍दी या कुरकुमा लोंगा– इसका संबध जिंजोबरेसी फैमिली से संबध रखती है। यह एक भूमिगल प्रकन्‍द या राइजोम तना है। हल्‍दी का पीला रंग जेन्‍थोफिल के कारण होता है। कुर्कुमिन के कारण हल्‍दी में कडवाहट होती है। इसका उपयोग रक्‍त शोधक एवं सौन्‍दर्य प्रसाधन के रूप में किया जाता है।

तुलसी- तुलसी को किंग्‍स ऑफ रॉयल हर्ब/ जीवन का अमृत भारतीय डॉक्‍टर की संज्ञा दी गई है।

नीम- मारगोसा तेल इसके बीज से प्राप्‍त किया जाता है, त्‍वचा की बीमारी में इसका प्रयोग किया जाता है।

अश्‍वगंधा– अश्‍वगंधा की जड़ का उपयोग अस्‍थमा के उपचार में किया जाता है।

घृत कुमार या एलोवेरा– फैमिली- एस्‍फोडिलेसी । इसका उपयोग त्‍वचा संबंधी रोगो में किया जाता है।

प्रमुख नकदी फसलें

चाय-

  • चाय की पत्तियेां का प्रयोग किया जाता है।
  • इसमें स्‍फूर्तिदायक य उत्‍तेजनावर्धक गुण थिन के कारण होता है।
  • इसमें टेनिक उम्‍ल पाया जाता है जो लार के स्‍त्रावण को बढाता है।
  • चाय की खुशबु थियाल के कारण होती है।
  • हरी चाय जापान, काली चाय भारत और श्री लंका में उत्‍पादित की जाती है।
  • भारत में सर्वप्रथम जी आई टैग- दार्जिलिंग टी, पश्चिम बंगाल को मिला है।

हींग- हींग के जड़ को काटने से रेसिन नामक पदार्थ प्राप्‍त होता है, जो सूखाभूरा होता है। इसका उत्‍पादन जम्‍मू काश्‍मीर में होता है। इसका उपयोग मसाले, मिर्गी और निद्राकारी के लिये किया जाता है।

सर्पगंधा- यह पौधों की जड़ की छाल से रेसरपाइन औषधि के रूप में प्राप्‍त किया जाता है। इसका उपयोग उच्‍च रक्‍तचाप अथवा हाइपर टेंसन को सामान्‍य रक्‍तचाप में बदलता है। इसका उपयोग सर्पदंश और पागलपन हेतु किया जाता है।

अफीम- इसे पौपी या पेपवर सोमनीफेरम के नाम से भी जाना जाता है। इसे काला सोना कहा जाता है। मार्फीन, हेरोइन, कोकीन । सर्वाधिक उत्‍पादन मध्‍यप्रदेश के खण्‍डवा में किया जाता है।

गांजा- वैज्ञानिक नाम- कैनाबिस सेटाइवा । यह केनाइवा सेटाइयवा पौधे के पुष्‍प में उपस्थित मादा भाग जायांग या स्‍त्रीकेसर से प्रापत होता है। इसके पौधे से मारिजुयाना प्राप्‍त होता है। इसकी पत्‍ती से भांग प्राप्‍त होती है। 

केसर-

  • क्रोकस सोटाइवा पौधों के पुष्‍प में उपस्थित मादा भाग जायांग या स्‍त्रीकेसर से प्राप्‍त होता है।
  • पुष्‍प के मादा भाग स्‍त्रीकेसर की वर्तिका एवं वर्तिकाग्र से केसर की प्राप्‍त होता है।
  • सबसे महंगा मसाला केसर है।

काफी-  इसका वैज्ञानिक नाम अरेबिका एंड रोबस्‍टा है। कॉफी के बीज का प्रयोग किया जाता है। इसमें कैफीन होती है, जो रक्‍तदाब को बढाती है इसलिये कम रक्‍तचाप के रोगी को काफी की सलाह दी जाती है।

सेव- कुल- रोजेसी। सेव का खाया जाने वाला भाग थेलेमस/ पुष्‍पासन को खाया जाता है। सेव में मेलिक अम्‍ल पाया जाता है। इसके बीजों में सायनाइड जहर पाया जाता है। यह एक झूठा फल है। सेव को शीतोष्‍ण फलों का राजा कहा जाता है। एप्‍पल बाउल आफ इडिंया ‘हिमाचल प्रदेश’ को जाना जाता है।

अमरूद- अमरूद को गरीबों का सेव कहा जाता है। इसमें बिटामिन सी पाया जाता है।

आवंला- आवंला की उन्‍नत किस्‍में- कंचन, कृष्‍णा, बनारसी, नरेंद्र-10। (Mp me krishi)

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