प्राचीन इतिहास में भारत के ‘मध्यक्षेत्र’ का अत्यंत ही प्रभावपूर्ण योगदान रहा है। महाकाव्य काल में मध्यप्रदेश के प्रमुख जनपद वत्स, काशी, चेदि, दशार्ण, मतस्य, महिष्मति, अवन्ति, विदर्भ आदि थे। मध्यप्रदेश के प्रमुख राजवंश जिन्होंने देश के मध्यक्षेत्र में शासन किया, निम्न हैं-
‘मौर्यवंश, शुंग वंश, नागवंश, गुप्त वंश, औलिकर वंश, मौखरि वंश, राष्ट्रकूट वंश, गुर्जर-प्रतिहार वंश, चंदेल वंश, परमार वंश, कल्चुरी वंश, मालव वंश, कच्छपघाट वंश, तोमार वंश, गोंडवाना वंश, होल्कर वंश और सिधिंया राजवंश’ आदि।
मध्यप्रदेश के प्रमुख राजवंश विस्तार से-
मौर्य वंश–
नंद वंश के शासक ‘घनानंद’ को पराजित कर चन्द्रगुप्त मौर्य ने ‘मौर्य वंश’ की स्थापना की । सम्पूर्ण म.प्र. पर ‘मौर्य वंश’ का शासन रहा।
- ‘कौटिल्य के अर्थशास्त्र’ और ‘मेगस्थनीज की इंडिका’ से मौर्य साम्राज्य के बारे में जानकारी मिलती है।
- राजा अशोक ‘बिन्दुसार’ के शासन के दौरान अवंती व उज्जैनी महाजनपदों का कुमारपाल या राजकुमार था।
- अशोक ने ‘विदिशा’ में एक गिल्ड की बेटी लोक महादेवी से शादी की, और उनका एक बेटा ‘महेन्द्र और बेटी संघमित्रा’ थी।
अशोक के प्रमुख शिलालेख-
- पंगुड़रिया (सीहोर), रूपनाथ (जबलपुर), सांची (रायसेन) और सारोमारो (शहडोल) अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।
- उदेगोलम, मास्की, मेट्टूर और गुर्जरा नाम के चार शिलालेखों में ‘अशोक’ नाम का उल्लेख है।
- अशोक ने ‘सांची स्तूप’ का निर्माण करवाया जो कि म.प्र. के रायसेन जिले में स्थित है।
शुंग वंश–
अंतिम मौर्य राजा ‘बृहद्रथ’ को पुष्यमित्र शुंग ने मारकर ‘शुग वंश’ की स्थापना की । इनकीराजधानी- विदिशा थी।
- पुष्यमित्र के पुत्र ‘अग्नि मित्र’ ने विदिशा पर शासन किया।
- हेलियोडोरस ने विदिशा के पास ‘गरूड़ स्तंभ’ की स्थापना की।
- मध्यप्रदेश के सतना के पास स्थित ‘भरहुत स्तम्भ’, शुंग वंश से संबधित है।
नाग वंश– संस्थापक, वासु नाग। शासनक्षेत्र विदिशा- ग्वालियर ।
बोधि राजवंश– इनका शासन त्रिपुरी जबलपुर के आसपास रहा है।
मध वंश– इनका शासन क्षेत्र बुदेलखंड रहा है।
गुप्त वंश–
मध्यप्रदेश में ‘गुप्त वंश’ का शासन ‘समुद्रगुप्त’ के काल में स्वर्णिम रहा है। सागर के एरण शिलालेख में समुद्रगुप्त की तुलना ‘कुबेर व यमराज’ से की गई है। ‘सती प्रथा’ का पहला प्रमाण इसी शिलालेख से मिलता है।
- चंद्रगुप्त द्वतीय के शासन काल में ‘उज्जैन’, गुप्त वंश की दूसरी राजधानी थी ।
- इस वंश के नौ रत्नों में कालिदास प्रमुख थे।
- चीनी यात्री ‘फाह्यान’ ने मध्यप्रदेश को ‘ब्राहम्मणों की भूमि’ के रूप में वर्णित किया है।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय के सिक्के सिवनी, हरदा और वरमाला (खण्डवा) में पाए गए हैं।
- मंदसौर और तुमेन (ग्वालियर) शिलालेख ‘कुमारगुप्त’ से संबधित है।
- ‘मालवा’ का अंतिम शक्तिशाली शासक ‘भानुगुप्त’ था जिसे हूणों ने पराजित किया।
औलिकर वंश– चौथी शताब्दी ई. में ‘मालवा’ के आसपास वाले क्षेत्रों पर शासन किया। इस वंश के प्रमुख शासक नरवर्मन, सिंघवर्मन, जयवर्मन व बहुवर्मन आदि थे।
परिव्राजक वंश– गुप्तकाल के समकालीन। मध्यप्रदेश के ‘पन्ना क्षेत्र’ में शासन किया।
मैत्रक वंश- गुप्त वंश के समकालीन एवं मध्यप्रदेश के ‘रतलाम क्षेत्र’ में शासन किया।
मौखरी वंश– मौखरियों ने गुप्त वंश के पतन के बाद अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया। इस वंश में सबसे शक्तिशाली शासक ‘कन्नौज’ के थे। इनका शासन मुख्यत: ‘पूर्वी निमाड़ क्षेत्र और असीरगढ़ (बुरहानपुर)’ के क्षेत्र में रहा है।
राष्ट्रकूट वंश– इस वंश का संस्थापक ‘दंति दुर्ग’ था, इसने 7वीं से 10वीं शताब्दी ई. तक शासन किया। राष्ट्रकूट की मुख्यत: दो शाखाएं थी- एक शाखा ‘बैतुल अमरावती क्षेत्र’ में जबकि दूसरी शाखा ‘मान्यखेत’ वर्तमान महाराष्ट्र के सोलापुर क्षेत्र में शासन करती थी। इन्होंने ‘बादामी के चालुक्यों’ को हराया।
गुर्जर प्रतिहार वंश– इस वंश का प्रथम राजा ‘नागभट्ट प्रथम’ था, जिसकी राजधानी ‘उज्जैन’ थी। प्रतिहार वंश के श्रेष्ठ राजा ‘मिहिरभोज’ ने बुंदेलखंड में शासन किया है।
मध्यप्रदेश के प्रमुख राजवंश (मध्यकालीन)-
चंदेल वंश– इस वंश का संस्थापक ‘नन्नुक’ था। इसकी राजधानी खजुराहो थी। इस वंश के महत्वपूर्ण शासकों में हर्ष देव, यशोधरमन, धंग देव, विद्याधर व विजयपाल प्रमुख थे। खजुराहो के ‘पार्श्वनाथ और विश्वनाथ मंदिरों’ का निर्माण ‘धंगदेव’ ने करवाया था। ‘राजा विद्याधर’ ने खजुराहो के कंदरिया महादेव मंदिर का निर्माण करवाया था।
परमार वंश-
इस वंश का संस्थापक ‘उपेंद्र या कृष्णराजी’ था, जिसने अपनी राजधानी धरनागरी/ धार को बनाया था।
- परमार वंश के प्रमुख शासक सिमुक, मुंज, सिंधुराज एवं राजा भोज थे।
- चंद्रबरदाई की रचना ‘पृथ्वीराज रासों’ में परमार वंश की उत्पत्ति ‘अग्निवंश’ से मानी जाती है।
- अलाउद्दीन खिलजी ने इस वंश के अंतिम शासक ‘मेहकल देव’ को 1305 ई. में मार दिया और मालवा को ‘दिल्ली सल्तनत’ में मिला लिया।
- राजा भोज ने औषधि, खगोल विज्ञान, धर्म, व्याकरण और वास्तुकला पर विभिन्न पुस्तकें लिखी।
- इन्हें ‘कविराज’ के नाम से भी जाना जाता था।
- पतंजलि के ‘योगसूत्र’ पर आयुर्वेद सर्वस्व (औषधीय), सरस्वती कंठभरन, समरंगद सूत्र (वास्तुकला) एवं राजा मार्तण्ड जैसी कई रचनाएं लिखी हैं।
- उज्जैन में ‘भतृहरि गुफाओं’ का निर्माण इसी वंश के राजाओं द्वारा करवाया गया है।
कलचुरी वंश– इस वंश का संस्थापक ‘कोक्कल’ था, जिसने त्रिपुरी व जबलपुर के क्षेत्रों में शासन किया।
- इस वंश को ‘हैहय वंश’ के नाम से भी जाना जाता है।
- कवि ‘राजशेखर’ कलचुरियों के दरबार में रहता था। इसकी प्रमुख रचनाएं काव्यमीमांसा, करपुरमंजरी और विगदशाला भंजिका हैं।
- इस वंश का सर्वश्रेष्ठ ‘राजा गंगेयदेव’ था, जिसने कलिंग पर अपनी जीत के बाद ‘त्रिकलिंगाधिपति’ की उपाधि धारण की।
मालवा-
- मालवा राज्य की स्थापना 1392 ई. में ‘दिलावर खान गौरी’ ने की थी।
- इसके पुत्र ‘अल्प खान’ ने होशंगाबाद शहर की स्थापना की और होशंगशाह की उपाधि धारण की।
- अल्प खान ने अपनी राजधानी ‘धार’ से बदलकर ‘मांडू’ कर दिया था।
- ‘मांडू को शादियाबाद या सिटी ऑफ जाय’ के नाम से भी जाना जाता है।
- होशंगशाह ने ‘चित्तौड़’ पर विजय के उपलक्ष्य में ‘चित्तौड़ स्तंभ’ की स्थापना की ।
कच्छपघाट वंश– इस वंश का शासन ग्वालियर और नरवर (शिवपुरी) के क्षेत्र में 10 वीं से 12वीं शताब्दी तक रहा है। 1093 ई. में ‘राजा महिपाल’ ने ग्वालियर में ‘सास-बहू मंदिर’ का निर्माण करवाया था। 1019 ई. में ‘महमूद गजनवी’ और 1149 ई. में ‘मोहम्मद गोरी’ ने ग्वालियर पर आक्रमण किया था।
तोमर वंश–
- संस्थापक- वीर सिंह देव तथा इसकी राजधानी ‘ग्वालियर’ थी।
- अपनी राजनीतिक और सांस्कृतिक उपलबिधयों के लिए पहचाने जाने वाले ‘राजा मान सिंह’ इस वंश के महान शासक थे।
- मान सिंह ने ‘ग्वालियर’ में गुजरी महल और मान मंदिर का निर्माण करवाया।
- मानसिंह एक ‘संगीतज्ञ’ थे इनकी एक किताब का नाम ‘मन कोतुहल’ है।
फारूकी वंश– संस्थापक ‘मलिक रजा फारूखी’। इसकी राजधानी ‘बुरहानपुर’ थी। इसका शासनक्षेत्र मुख्यत: निमाड़, खानदेश व दक्षिणी मालवा रहा है।
गोंडवाना राजवंश– इस वंश का प्रमुख शासक ‘संग्राम शाह गोंड’ था। खिलजी वंश के पतन के बाद ‘गोंड’ शासकों का उदय हुआ। ‘संग्राम शाह’ के पुत्र ‘दलपत शाह गोंड’ का विवाह चंदेल ‘राजकुमारी दुर्गावती’ के साथ हुआ था। ‘रानी दुर्गावती’ ने गोंडवाना पर 16 वर्षों तक शासन किया। इनकी समाधि ‘जबलपुर’ में स्थित है।
मध्यप्रदेश के प्रमुख राजवंश (आधुनिक कालीन)-
होल्कर वंश– इस वंश के संस्थापक ‘मल्हार राव होल्कर’ थे एवं इसकी राजधानी इंदौर थी । ‘अहिल्याबाई होल्कर’ इस वंश की प्रमुख शासिका थी। इन्होंने अपनी राजधानी ‘महेश्वर’ को बनाया। वह अपने कल्याणकारी कार्यों के लिये जानी जाती हैं।
सिंधिया वंश– इस वंश के संस्थापक ‘रानोजी सिंधिया’ थे। इसकी राजधानी 1810 ई. तक उज्जैन, उसके बाद ‘दौलतराव सिंधिया’ ने ग्वालियर स्थानांतरित की। 1947 ई. में ग्वालियर रियासत को ‘जीवाजीराव सिंधिया’ के द्वारा भारत में मिला दिया था।
और अधिक पढ़ें– स्वतंत्रता आंदोलन में मध्यप्रदेश का योगदान।
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